नई दिल्ली, स्वच्छ खबर संवाददाता ओमपाल प्रसाद की रिपोर्ट
दिल्ली में छठ महापर्व के दौरान पटाखों पर रोक न लगाकर सरकार ने प्रदूषण को बढ़ावा दिया, जिसका सीधा असर राजधानी की हवा की गुणवत्ता पर पड़ा। परिणामस्वरूप, दिल्ली के विभिन्न अस्पतालों में सांस से जुड़ी समस्याओं के रोगियों की संख्या में चिंताजनक वृद्धि देखी गई। राजधानी में दिवाली जैसे महापर्व पर पटाखों पर प्रतिबंध के बावजूद छठ महापर्व पर दी गई ढील से प्रदूषण का स्तर बेतहाशा बढ़ा, जिससे लोग खासकर अस्थमा के मरीज गंभीर संकट में पड़ गए।
छठ पर्व और पटाखों से बढ़ा AQI का स्तर
छठ पूजा के अवसर पर दिल्ली के प्रमुख घाटों जैसे यमुना किनारे और कॉलोनियों में लाखों श्रद्धालु एकत्र हुए, जिन्होंने सूर्य देवता को अर्घ्य देकर पारंपरिक रीति-रिवाजों से पूजा की। इस दौरान श्रद्धालुओं ने पटाखे जलाकर उत्सव मनाया, जिससे चारों ओर धुएं का गुबार छा गया। नतीजन, दिल्ली का एयर क्वालिटी इंडेक्स (AQI) स्तर सामान्य से कई गुना अधिक हो गया। यह स्थिति दिल्लीवासियों के लिए घातक साबित हुई, खासकर उन लोगों के लिए जो अस्थमा, ब्रोंकाइटिस, और अन्य श्वास से जुड़ी बीमारियों से पहले से ही जूझ रहे थे।
दिल्ली सरकार की नीति पर सवाल
दिल्ली सरकार ने पहले दीपावली पर पटाखों पर रोक लगाई थी, जिससे पर्यावरण और स्वास्थ्य को लेकर एक मजबूत संदेश दिया गया था। लेकिन छठ पर्व पर ऐसा कोई कदम न उठाकर सरकार ने अपनी नीति पर सवाल खड़े कर दिए हैं। आलोचकों का कहना है कि यह दोहरे मापदंड का उदाहरण है। दीपावली पर पटाखों की बिक्री और उपयोग पर पूर्ण प्रतिबंध के बावजूद छठ पर ढील देना यह दर्शाता है कि प्रदूषण और स्वास्थ्य के प्रति सरकार की नीति स्पष्ट नहीं है।
अस्पतालों में मरीजों की संख्या में इजाफा
पटाखों से फैले धुएं और बढ़ते प्रदूषण के कारण दिल्ली के अस्पतालों में सांस के मरीजों की संख्या में भारी इजाफा हुआ। विशेषकर अस्थमा और श्वास रोग से पीड़ित लोग अधिक प्रभावित हुए हैं। कई लोगों को सांस लेने में कठिनाई, खांसी, और गले में जलन जैसी समस्याओं के चलते अस्पतालों में भर्ती करना पड़ा। डॉक्टरों का कहना है कि दिल्ली में पहले से ही प्रदूषण का स्तर खतरनाक स्तर पर है और पटाखों के धुएं से हालात और बिगड़ रहे हैं।
क्या होनी चाहिए सरकार की भूमिका?
प्रदूषण से निपटने के लिए सरकार का दायित्व है कि वह सभी त्योहारों पर एकसमान नियम लागू करे। यदि दीपावली पर पटाखों पर प्रतिबंध लगाया जाता है, तो छठ जैसे अन्य पर्वों पर भी यह नीति समान रूप से लागू होनी चाहिए। इस प्रकार की ढील से प्रदूषण का खतरा न केवल दिल्लीवासियों के लिए, बल्कि राजधानी में आने वाले पर्यटकों और अन्य राज्यों के लोगों के लिए भी बढ़ता है।
सरकार को चाहिए कि वह इस विषय पर गहराई से विचार करे और ऐसे कठोर कदम उठाए जिनसे दिल्ली के पर्यावरण को संरक्षित किया जा सके। यदि पटाखों का उपयोग करने की परंपरा किसी भी त्योहार पर है, तो उसके लिए वैकल्पिक तरीकों को बढ़ावा देना चाहिए, ताकि परंपराओं के साथ-साथ पर्यावरण का संतुलन भी बना रहे।
निष्कर्ष
छठ महापर्व के दौरान दिल्ली सरकार की ओर से पटाखों पर रोक न लगाना एक बड़ी चूक रही है। इससे प्रदूषण के स्तर में भयानक इजाफा हुआ है और अस्थमा समेत अन्य श्वास रोगों से पीड़ित लोग गंभीर संकट में पड़ गए हैं। यह घटना सरकार की पर्यावरणीय नीतियों में दोहरे मापदंड की ओर इशारा करती है। ऐसे में, सरकार को चाहिए कि वह भविष्य में सभी धार्मिक एवं सांस्कृतिक पर्वों पर एक समान नीति अपनाए और लोगों के स्वास्थ्य को प्राथमिकता दे।